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Climate Change solution

हेलो दोस्तों कैसे हो आप सभी लोग मै आशा करता हूँ आप सभी ठीक होंगे। तो दोस्तों आप सभी का एक बार फिर से स्वागत है studypoint760.com पर।

तो दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम बात करेंगे हमारे मौसम और हमारी पृथिवी और हमारे वातावरण की। आप सभी लोग तो जानते ही है की किस तरह हम लोग टेक्नोलॉजी के चक्कर में धीरे धीरे हर एक चीज का विनाश होता जा रहा है। तो आज का य आर्टिकल इसी विनाश को रोकने के लिए क्या करे उसके ऊपर होने वाला है। कैसे हमे आने वाले समय में समुन्द्र से समस्या हो सकती है। तो आज बात करते है हमारे क्लाइमेट की। तो शुरू करते है और जानते है की क्यों जरुरत है क्लाइमेट चेंज सलूशन की।

क्यों जरुरत है क्लाइमेट चेंज सोलुशन की।

पिछले कुछ सालों में आर्थिक पर मौजूद बर्फ़ बुरी तरह पिघल रही है। साल 2020 में आर्थिक की सी आइस में रिकॉर्ड गिरावट देखी गई। अगर ऐसा ही चलता रहा तो अगले कुछ दशकों में बड़े बड़े शहर डूबने की कगार पर पहुँच जाएंगे। बढ़ते समुद्र स्तर के चलते 2050 तक जकार्ता और कोलकाता जैसे शहर रहने लायक नहीं बचेंगे। इस सदी के अंत तक मुंबई जैसे शहर भी डूब चूके होंगे। क्या हम यह सब होने से रोक सकते हैं। कुछ विश्वसनीय रिपोर्ट की मानें तो ग्लोबल वार्मिंग को रोकने का आखिरी मौका हम गंवा चूके हैं। अगर अब हम कार्बन एमिशन कम करने की कोशीश भी करते हैं। क्योंकि किसी तरीके से होता हुआ दिख नहीं रहा है। तब भी एक भयानक भविष्य हमारे सामने खड़ा है। लेकिन कुछ तरकीबें है जिनसे उम्मीद का धागा बंधा हुआ है।

क्लाइमेटचेंज और उसके भयानक खतरों पर तो बात हमेशा होती है, होनी भी चाहिए, लेकिन उसके सॉल्यूशन्स पर कम बात होती है। इसलिए इस पोस्ट में हम क्लाइमेटचेंज और उसके कुछ क्रांतिकारी सॉल्यूशन्स के ऊपर बात करेंगे।

कहानी वहाँ से शुरू होती है जब मनुष्योंने फॉसिल फ्यूल यानी जीवाश्म ईंधन के बारे में जाना। करोड़ों साल पहले धरती के भीतर जो जीवाश्म दफन हुए वो कालांतर में ईंधन में तब्दील हो गए। इसी धन का आधार कार्बन नामक रसायनिक तत्व है। जब हम यह फ्यूल जलाते हैं तो इससे कार्बन डाइऑक्साइड निकलती ये कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीन हाउस गैस पृथ्वी के लिए एक कंबल की तरह काम करती है। पृथ्वी पर सूर्य से गर्मी आती है। सूरज की किरणें पृथ्वी पर आती हैं, उनमें से ज्यादातर रिफ्लेक्ट होकर वापस अंतरिक्ष में लौट जाती है। इससे पृथ्वी का तापमान संतुलित रहता है। लेकिन कार्बन डाइऑक्साइड जैसी ग्रीन हाउस गैस इस गर्मी को रोक कर रखती है। और पृथ्वी को गर्म बनाती है। वातावरण में इन गैसों की मात्रा जितनी ज्यादा होगी, उतनी ज्यादा गर्मी पृथ्वी पर फंसी रह जाएगी। यही है ग्लोबल वार्मिंग इसी को क्लाइमेट चेंज भी कहते हैं। इस समस्या का हल निकालने के लिए हमें वातावरण से ये कार्बन वापस खींचना होगा। कार्बन को खींचने की एक बहुत ज्यादा टेक्नोलॉजी प्रकृति ने बना रखी है।

इस टेक्नोलॉजी का नाम है पेड़, पौधे, पेड़, पौधे अपने काम के हिसाब से कार्बन डाइऑक्साइड खींचते हैं और बदले में हमें ऑक्सीजन निकाल कर देते हैं। तो हम मनुष्य ठहरे अव्वल दर्जे के मूर्ख औद्योगीकरण के साथ साथ हमने बड़े पैमाने पर जंगलों को काटना भी शुरू कर दिया। और अब जाकर हमें यहाँ हो रहा है कि चलो वृक्षारोपण करते है। चलो ठीक है देर सवेर अकल तो आई लेकिन एक बहुत बड़ी चीज़ है जीस को हम मिस कर रहे हैं। अगर उसको हम इन्क्लूड कर लेते हैं। तो क्लाइमेट चेंज की ये लड़ाई एक बहुत बड़ा मोड़ ले लेगी। अभी तक हम जो पेड़ पौधे लगाने की बात कर रहे हैं। उन्हें जमीन पर ही लगाने की बात कर रहे हैं। और यह जमीन पृथ्वी का महज तीस प्रतिशत हिस्सा है। पृथ्वी का सत्तर प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा महासागरों से पानी से भरा हुआ है। क्लाइमेटचेंज की लड़ाई में हमें महासागरों को भी शामिल करना होगा। कार्बन स्टोर करने के मामले में समुद्र बहुत कारगर होते हैं। दुनिया के महासागर कार्बन के सबसे बड़े भंडार हैं। पानी के भीतर मौजूद बायोमास जैसे पौधे, मछलियां और अन्य स्तनधारी जीव समुद्र तल के नजदीक खेलते कूदते रहते हैं। ये बायोमास वातावरण से अच्छा खासा कार्बन बटोरता है।

और मृत्यु के बाद इनके अवशेष समुद्र की गहराई में दफन हो जाते हैं। इनके साथ कार्बन की भारी मात्रा भी वहाँ दबकर रह जाती है। महासागर तो ये काम लाखों करोड़ों सालों से करते आ रहे थे, लेकिन मानव गतिविधियों के चलते इन महासागरों के इको सिस्टम की ऐसी तैसी हो रखी है। ये पहले के मुकाबले ज्यादा गर्म हो चूके हैं। और कई इलाकों में अत्यधिक ऐसिडिक हो चूके हैं। इससे वहाँ का जीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ है। और अब ये अच्छे खासे फलने फूलने वाले महासागर वीरान से हो गए हैं। यहाँ भी होमो सैपियंस में एकदम पीठ थपथपाई आने वाला काम किया है। अब आगे क्या करना है? आगे हमें ये करना है कि इन महासागरों में दोबारा जान फूंकनी होगी। लेकिन यह कैसे होगा? कैसे इन है? इस तरह दोबारा बनाया जाए कि ये कार्बन खींचने लगे वायुमंडल से। इसके लिए जो सबसे पॉपुलर तरीका है वो है फाइटो प्लैंगक्टन।

फाइटो प्लैंगक्टन माइक्रोस्कोपिक जीव होते है बहुत ही छोटे ये हमें आँखों से दिखाई नहीं देते, लेकिन इन्हें समुद्र की फूड चेन की बुनियाद माना जाता है। अगर कही ये ना हो तो वहाँ के खाने पीने की फूड चेन डिस्टर्ब हो जाएगी। और वहाँ से दूसरे बड़े जीव भी लुप्त होने लगते हैं। मानो गतिविधियों की वजह से इनकी आबादी बहुत तेजी से गिरी है। पिछली सदी में जितनी फायटोप्लेकटन हुआ करते थे, अब महज उसकी आधीआबादी बची है। हमने महासागरों से उसके भोजन की बुनियाद छीन ली है। अगर हमें ओशन बायोमास रिस्टोर करना है तो जल्दी से जल्दी फाइटो प्लैंगक्टन पुनर्विकास योजना जैसा कुछ लाना होगा। और यह करने के लिए लोहा खर्च करना होगा। यहाँ पर आयरन की बात हो रही है, आयरन की जरूरत पड़ेगी आयरन की मदद से महासागरों में दोबारा फायटोप्लेकटन फलने फूलने लगते है। इंट्रेस्टिंग यह देखना है कि कितने आयरन की जरूरत होगी।

इसके लिए एक दवा की टेबलेट जितनी मात्रा के आयरन से स्विमिंग पूल जीतने साइज के पानी में भरपूर क्रांति आ सकती है। आयरन फर्टिलाइजेशन तकनीक पेश करने वाले वैज्ञानिक ने बड़ा दिलचस्प दावा किया था। उन्होंने कहा कि मुझे एक हाफ टैंकर भर के आयरन दे दो, मैं तुम्हे आइस एज में पहुंचा दूंगा। उनका कहने का मतलब ये था। कि इस टेक्नीक से ग्लोबल वार्मिंग को रिवर्स किया जा सकता है, लेकिन यह इतना सिंपल भी नहीं है। अगर ये सिंपल होता तो हम अब तक इसे कर चूके होते। महासागरों से जो हम एक और मदद ले सकते हैं, उसके लिए हमें आर्कटिक की ओर रुख करना होगा। आर्कटिक पृथ्वी का ऐसा इलाका है जो बाकी दुनिया के मुकाबले दोगुनी रफ्तार से गर्म हो रहा है। आर्कटिक की बर्फ़ पिघलने से मौसम में एक्स्ट्रीम वेदर इवेंट्स देखने को मिलते हैं। चाहे वो भारत की हिट वेव्स हो या चीन की बाढ़ हो कुछ वैज्ञानिक का मानना है कि जब तक हम क्लाइमेटचेंज को फिक्स नहीं कर लेते तब तक के लिए आर्कटिक की बर्फ़ को दोबारा फ्रीज करना होगा। हमें यानी आर्कटिक की बर्फ़ दोबारा जमानी होगी।

इसे री फ्रीजिंग द आर्कटिक कहते हैं। इससे इन एक्स्ट्रीम वेदर इवेंट्स से कुछ समय के लिए छुटकारा मिल जाएगा। लेकिन सवाल यह है कि आर्कटिक की बर्फ़ को फ्रीज कैसे किया जाए? ऐसा करने की एक टेक्नीक बादलों से छेड़खानी करने पर आधारित है। प्लान ये है कि आर्कटिक के आसपास बड़ी बड़ी चिमनी जैसे टावर लगाए जाए। इनके जरिए समुद्र का खारा पानी ऊपर की तरफ पंप किया जाएगा। और ऊपर बारीक नोजल की मदद से ये नमकीन पानी बादलों में स्प्रे किया जाएगा। ये नमक के कारण बादलों को और फैलाने का काम करते हैं। और ये नमकीन पानी बादलों को पहले से ज्यादा रिफ्लेक्टिव बना देता है। ये बादल सूर्य से आने वाली किरणों को आईने की भाँति वापस रिफ्लेक्ट करने लगते हैं। इसके नीचे का इलाका ठण्डा होने लगेगा।

और आर्कटिक की बर्फ़ दुबारा जमने लगेंगी। ये सब सिर्फ साइंस फिक्शन ना रहें इसलिए केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के साइंटिस्ट काम पर जुट गए हैं। साल 2019 में केम्ब्रिज इंटर फॉर क्लाइमेट रिपेर की स्थापना हुई। यह अपनी तरह का पहला ऐसा सेंटर है जो क्लाइमेट की मरम्मत पर फोकस कर रहा है। इसलिए बनाया गया क्योंकि क्लाइमेटचेंज रोकने की जो मौजूदा रणनीतियां हैं वो नाकाफी मालूम होती है। ये सारे अप्रोच जिओ इंजीनियरिंग की एक शाखा के अंतर्गत आते हैं। जियो। इंजीनियरिंग यानी पृथ्वी की इंजीनियरिंग करना। इन चीजों की आलोचना भी बहुत होती है। आलोचक कहते हैं कि ये सब प्लान और सारी योजनाएं ये सब तो ठीक है। लेकिन अब भी बड़े स्तर पर प्रैक्टिकल तरीके से इनका कोई वजूद नज़र नहीं आ रहा है। तो ये सारी चीजें जो है, असली मुद्दों से ध्यान भटकाने का काम करती है।

और असली मुद्दा यहाँ पर कार्बन एमिशन को कम करने को बताया जा रहा है। इस बात पर तो सारे एक्स्पर्ट एक मत है कि हमें अगर ग्लोबल वार्मिंग को रोकना है। तो अगले कुछ सालों में कार्बन उत्सर्जन को कम करना होगा। लेकिन फिर इसका बचाव भी किया जाता है। जिन जिन रिंग का इसका बचाव करने वाले कहते हैं कि ठीक है, इसमें खामियां तो है बहुत सारी, लेकिन हमें देखना होगा कि उनकी खामियां क्या है? इनको किस तरीके से ठीक किया जा सकता है। और इनकी डाउन साइड को ओवर कम किया जा सकता है क्या? क्योंकि अब तो किसी ना किसी तरीके से हमे इसको रिपेर करने में तो लगना ही होगा। सिर्फ कार्बन उत्सर्जन कम करने से काम नहीं होगा। तो क्लाइमेट चेंज को लेकर के थोड़ी सी अवेयरनेस फैलाए खुद भी अवेयर हुई है। अवेर्नेस फैलाने का सबसे अच्छा तरीका यह है।

तो आज के लिए बस इतना ही आपसे फिर मिलते है एक टॉपिक के साथ अगर आपको य आर्टिकल पसंद आया हो तो इसको अपने दोस्तों के साथ ज्यादा से ज्यादा शेयर की जिए और अगर आपका कोई सवाल हो तो आप कमेंट करके पूछ सकते है।

जय हिन्द।

वनदे मातरम।

भारत माता की जय।


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